शनिवार, 28 मार्च 2009

दुष्ट- परिचय्

आदि-काल से पृथ्वी पर दुष्टों की भरमार रही है। और भगवान नें अलग-अलग रूप में अवतार ले कर उन का संहार किया है।कलयुग में तो हर तरफ दुष्टों का ही राज है और भगवान के लिये भी काफी मुश्किल की घडी है। लेकिन जिन दुष्टों की कली आज खुलने जा रही है वो ज़रा लीक से हट कर हैं उनके आक्रमण का केन्द्र-बिन्दु आज की भागती-दौडती जिन्दगी से पैदा हुआ अवसाद है ।इस अवसाद रूपी दानव के दुश्मन, ये पांच दुष्ट करीब पांच साल पूर्व जब मिले और एक मंच बना कर हिमाचल के छोटे-छोटे गांवों में जा कर लोगों को हास्य-विनोद के माध्यम से हंसाने का प्रयास किया तो लोगों के साथ-साथ दुष्टों को भी आनन्द की अनुभूती हुई।एक ज़माना था जब हास्य-रस के कार्यक्रमों की भरमार रहा करती थी लेकिन आज ये टेलीविजन या रेडियो में भी कभी-कभी ही नज़र आते हैं।आज का इंसान आटे-दाल और भविष्य के सवाल पर व्यस्तता ओढे बैठा है और हास्य निचुडे निम्बू की तरह हो गया है।इस से पहले कि ये भी सूख जाये आईए आप का तआरुफ इन दुष्टों से करवा दिया जाये।हमारी कोशिश है कि इस तरह के अनेक दुष्ट पूरे संसार में फैल जायें और अव्साद का ज़हर कम हो सके।आईए मिलते हैं एक अव्वल दर्ज़े के दुष्ट से जो अपने-आप में ही एक अजूबा है,जी हां मेरा इशारा पंडित लक्ष्मी दत्त शर्मा की तरफ है पेशे से पत्रकार आप अपने व्यंग बाणों से काफी गहरे उतर जाते हैं और हिंदी और पहाड़ी में दोनो में महारत रखते हैं।आप इनकी भोली सूरत पर कदापि ना जायें और ज़रा सावधान हो जायें। लक्ष्मी जी के तरकश में हर रंग के तीर हैं आप बस अपनी सीट बेल्ट से बन्धे रहिये। हम आपको ऐसी शव-यात्रा पर ले जा रहे हैं जिस मे पुरुष प्रधान समाज में उन के वर्चस्व को ही चुनौती दी गयी है पेश है लक्ष्मी दत्त शर्मा का पहला पठाखा........

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपका स्वागत है..... हिंदी ब्लॉग की दुनिया में.
    आप अच्छा लिखते है.. लिखते रहिये....

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  2. मित्र.., वक्त कहाँ लगता है ज़माने को करवट बदलते हुए,लगता है पाप का घड़ा अभी भरा नहीं .. ऊपर वाले का खेल बड़ा निराला है,वक़्त आने पर वो अपना खेल दिखता है ...
    देखिए बकरे कि माँ कब तक खेर मानती है ...,
    लेख अच्छा लगा मेरी सुभकामनाये स्वीकार करें .. मक्

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  3. ऐसे दुष्टों का सहर्ष स्वागत है.

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  4. सादर अभिवादन
    सबसे पहले तो आपकी रचना के लिए ढेरो बधाई
    ब्लोग्स के नए साथियो में आपका बहुत बहुत स्वागत

    चलिए एक मुक्तक से अपना परिचय करा रहा हूँ

    चले हैं इस तिमिर को हम , करारी मात देने को
    जहां बारिश नही होती , वहां बरसात देने को
    हमे पूरी तरह अपना , उठाकर हाथ बतलाओ
    यहां पर कौन राजी है , हमारा साथ देने को

    सादर
    डा उदय ’मणि’ कौशिक
    http://mainsamayhun.blogspot.com

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