सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

बन्दिश

उसने जब भी मेरे पीने पर बंदिशें रखी
हम ने भी छुप कर पहले से ज्यादा चक्खी।
मैं ना भी पीता विश्वास वो नहीं करती
अक्सर बीवीयां होती ही हैं आदतन शक्की।

गई जो मायके बडी अदा से वो बोली
कसम है तुमको जो पीछे से बोतल खोली
हम उस कसम का हम पूरा खयाल रखते हैं
रख के तस्वीर सामने ही मय को चखते हैं।

ये बात सच है बीवी से डरना पडता है
हिदायतों को उन की अम्ल करना पडता है
वो दिन को रात कहें अपना क्या बिगडता है
बस आंख को जरा सा बंद करना पडता है।
(अमर पथिक)

1 टिप्पणी:

  1. दुष्ट गायब से हो गए एक-एक कर के सब
    दिन महीने साल जाने बीते कब
    दो वर्ष बाद फिर से आया ध्यान
    कतरनो में रह जाएगा हम दुष्टों का ज्ञान

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