शनिवार, 23 मई 2009

कहां तेरी मेरी रीस प्रिये
है दिल में बस ये टीस प्रिये
...

तुम सुपर-फास्ट राज़धानी हो,
मैं अदना सा इक स्टेशन हूँ
तुम ओपन -हार्ट् सर्ज़री हो,
मैं मायनर सा औपरेशन हूं।

तुम कोट्गढ का बागीचा,
मैं बबूल की बेबस झाड़ी,
तुम पब्लिक स्कूल मंसूरी का,
मैं पटना की आँगन बाडी ,


तुम व्यस्त चोराहा सोलन का,
मैं पगडंडी हूं गांव की,
तुम हीरों जड़ा हो हार प्रिये

में टूटी चप्पल पावं की।....

तुम बड़ॆ साहब की पी-ए हो,
मैं चपरासी हूं शाला का,
परिचारिका तुम एयर-इण्डिया की,
मैं नौकर हूं मधूशाला का।...


तुम होली का गुलाल प्रिये,
मैं गीला पठाका दीवाली का,
तुम छप्पन भोग प्रसाद प्रिये,
मैं हूं बैंगन किसी थाली का।

तुम गोविन्द-सागर झील प्रिये,
मैं तो बरसाती नाला हूं,
तुम माल रोड का होटल तो,
मैं पंचायती धर्मशाला हूं।


तुम शाही-पनीर की हो सब्जी,
मैं उडद की साबुत दाल प्रिये,
तुम देहरादून का घंटा-घर,
मैं हूं टिहरी गढ्वाल प्रिये।...


तुम आगरा का हो ताजमहल,
मैं जर्जर् किला पुराना हूं,
तुम स्विस्-बैंक का लाकर हो,
मैं गला-सडा तह्खाना हूं।


तुम रोलस-रोय्स बर्मिंघम की,
मैं लम्ब्रेटा सन पचपन का,
तुम कैड्बरी चाक्लेट प्रिये,
मै लक्कड-चूस हूं बचपन का।

तुम शैम्पैन विलायती हो,
मैं देहात की कच्ची दारू,
तुम वैक्यूम पंप विलायती हो,
मै सींखों वाला हूं झाड़ू,


तुम इन्द्र-लोक की मेनका ,
मै भान्ड हूं चंडू-खाने का,
तुम स्कोटलैंड् यार्ड की अफसर हो,

मैं मुंशी गढ्खल थाने का।

तुम जार्ज-बुश अमरीका के,
मै बेचारा सद्दाम प्रिये,
तुम एच-आई-वी का वायरस हो,
मैं बे-मौसम जुखाम प्रिये...

तुम करवा चौथ का चादं प्रिये,
मैं उल्का-पिंड धुएं वाला,
तुम शीतल पवन हो शिमला की,
मैं तपती लू की इक ज्वाला।

तुम ऐश्वर्या सी दिखती हो,
मैं पूरा जानी-वाकर हूं,
तुम क्रेडिट-कार्ड अम्बानी का,
मैं कंगाल बैंक का लाकर हूं।...


तुम लास-वेगास का ज़ैक-पौट्
मैं चूरण वाली पर्ची हूं,
तुम पेज़ -थ्री की मौडल हो,
मैं नुक्कड्वाला दर्ज़ी हूं।


तुम क्रिक्केट का हो मैच प्रिये,
मै गली का गुल्ली-डंडा हूं,
तुम बाला जी के ट्र्स्टी हो,
मैं हरिद्वार का पंडा हूं...।


नहीं तेरी-मेरी रीस प्रिये,
है दिल मैं बस ये टीस प्रिये..


इस रचना को दुबारा पोस्ट कर रहा हूँ

2 टिप्‍पणियां: